एक सच्चे प्यार की चोट

एक सच्चे प्यार की चोट


बात कुछ साल पहले की है। लखनऊ में एक लड़की अपनी मैडिकल नर्सिंग की पढ़ाई खत्म करके किसी अच्छी नौकरी की तलाश में थी। यूँ तो सुधा ने अपनी पढ़ाई बहुत ही अच्छे काॅलेज से पूरी करी थी लेकिन उसे फिर भी नौकरी नहीं मिल पा रही थी। एक दिन उसके पुराने प्रोफेसर ने बताया कि लखनऊ के एक बड़े मनोवैज्ञानिक अस्पताल में नर्स की जरूरत है जो रोगियों की देखभाल अच्छी तरह कर सके। प्रोफेसर साहब के कहने पर वह नौकरी सुधा को दे दी गयी।

सुधा ने खूब मन लगाकर मरीजों की देखभाल करना शुरू कर दिया। कभी-कभी तो कुछ चिड़चिड़े मरीज सुधा को बिना बात के डाँट-डपट देते लेकिन वह उनकी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी तथा अपना कर्तव्य पूरी तन्मन्यता से करती थी। अस्पताल में कई वार्ड भी थे जहाँ मरीज रहकर अपना ईलाज करवाते और ठीक होकर अपने घर चले जाते थे।

एक बार सुधा के अस्पताल में अशोक नाम का एक मरीज लाया गया जो एक बहुत ही सम्पन्न परिवार का था। परिवार वाले अस्पताल के बारे में सुनकर आये थे कि जो मरीज भी यहाँ आता है वो यहाँ से ठीक होकर ही जाता है। उसके पिता ने डाक्टरों और सुधा की ओर बड़ी आशा भरी निगाहों से देखा। सबने अशोक के पिता को तसल्ली दी और कहा भरोसा रखें सब ठीक हो जायेगा।

अशोक शुरू-शुरू में काफी गुस्से वाला था, हमेशा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होकर सामान इधर-उधर फैंक दिया करता था लेकिन सुधा के धैर्य और सेवा भाव के कारण हर बात को मानने लगा और समय से दवा खाकर आराम करने लगा। सुधा की मेहनत के कारण अशोक की हालत तेजी से सुधरने लगी। सुधा अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त अशोक के साथ बिताने लगी। उसको सुबह कपड़े बदलवाने, नाश्ता देने, दवा देना, दोपहर का खाना देना और शाम को चाय आदि के बाद खाना खिलाकर रात की दवा देने के बाद ही वह अपने नर्स क्वाटर में जाती थी।



अशोक को तो जैसे सुधा की आदत सी पड़ गयी थी। सुधा के जरा सा लेट हो जाने पर वह बैचेन होकर बच्चों की तरह मचलने लगता और सुधा को देखते ही शांत हो जाता था। धीरे-धीरे सुधा भी अशोक को पसंद करने लगी और उसे पता ही नहीं लगा कि उसे कब अशोक से प्यार हो गया।

समय बीतता गया और वह दिन भी आया जब डाक्टरों ने अशोक को एकदम स्वस्थ घोषित कर दिया और उसके पिता अशोक को लेने अस्पताल आ पहुँचे। अशोक को अपने पास से जाते देख सुधा बहुत उदास हो गयी लेकिन वह अशोक को कुछ न कह सकी। उसे लगता था कि शायद अशोक एक दिन उसके पास आयेगा और कहेगा कि वो तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। लेकिन समय बीतता गया, अशोक नहीं आया। किसी ने बताया कि अशोक की शादी भी हो गयी है। ऐसा सुनकर सुधा का तो दिल ही टूट गया। परन्तु वह अपने काम में व्यस्त रहकर अपने दिल पर मरहम लगाने लगी। समय बीतने के साथ सुधा अपने दुःख से उबरने लगी।

एक दिन अस्पताल में एक बहुत ही आकर्षक नवयुवक अमर आया जो दिमागी बीमार था। उसने आते ही अस्पताल में तोड़-फोड़ शुरू कर दी। जो भी उसके पास जाता अमर उसे डरा-धमकाकर भगा देता। न वह समय से दवा लेता न ही समय से खाना खाता अथवा सोता था। डाक्टर साहब ने अमर को संभालने का जिम्मा भी सुधा को ही सौंपा। सुधा तो अभी-कभी अशोक की यादों से उभरी थी वह अमर को संभालने को तैयार न थी। लेकिन अपने फर्ज और मरीज की मनोस्थिति के चलते वह उसे संभालने को तैयार हो गयी। शुरू-शुरू में तो सुधा को अमर की गालियाँ और नाराजगी झेलनी पड़ी लेकिन धीरे-धीरे वह भी शांत होने लगा। अब सुधा के धैर्य के कारण अमर उसकी बात को बड़े गौर से सुनता और सब बात मानने लगा।

लेकिन एक आदत जो वो छोड़ ही नहीं पा रहा था वो थी उसकी जोर-जोर से चीजे़े बेचने की आदत। यूँ तो सुधा अमर की बातों में ज्यादा रुचि नहीं लेती थी पर एक दिन उसके जोर-जोर से चीजे़े बेचने वाली आवाज के कारण रुककर अमर के पास पहुंची और पूछा कि तुम क्या बेच रहे हो तो अमर ने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया कि वह तो बर्फ का तेल बेच रहा है। यह सुनकर सुधा की बहुत जोरों से हँसी छूट पड़ी।

दरअसल अमर के पागलपन की असल वजह उसकी बेवफा प्रेमिका मोना थी जो अमर से ज्यादा अमर की दौलत को चाहती थी। वो कभी भी अमर को प्यार के वह पल न दे पायी जो एक प्रेमी अपने प्रेमिका से चाहता है। उसकी इसी बेरुखी से अमर का प्यार और ईमानदारी से विश्वास ही उठ गया। मोना की बेवफाई ने उसके दिल और दिमाग को कुछ इस तरह झकझौरा कि अमर की दिमागी हालात कुछ खराब हो गये और इलाज के लिए इस अस्पताल में आया।

सुधा के अच्छे व्यवहार और सेवा ने धीरे-धीरे अमर के दिल में एक खास जगह बना ली। अब वह हर वक्त सुधा के बारे में ही सोचने लगा। उसे हर वक्त सुधा के आने का इंतजार रहता कि कब सुबह हो और सुधा आये। धीरे-धीरे वह सुधा को दिल की गहराईयों से प्यार करने लगा। लेकिन सुधा इस स्थिति से अनजान थी क्योंकि उसने तो केवल अशोक को ही दिल से प्यार किया था जो उसे मिल न सका इसलिए वह किसी को अशोक की जगह नहीं रख पा रही थी।

एक दिन अमर ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी हो वो सुधा को अपने प्यार का इजहार कर देगा। उसने अस्पताल कर्मचारी से एक फूलों का गुलदस्ता मंगवाकर अपने प्यार के भावों को एक चिट्ठी में लिखकर सुधा के कमरे में पहुंचाया। सुधा ने कांपते हाथों से वह खत खोला और धीरे-धीरे पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते वो अपने पुराने समय में पहुंच गयी जब वह अशोक को बेहद प्यार करती थी। जब सुधा ने पूरा खत पढ़ा और आखिर में अमर का नाम पाया तो वह अपने आप को सम्भाल न पायी क्योंकि एक अशोक था जिसे उसने अपने दिल से चाहा लेकिन वह उसे पा न सकी और एक अमर है जो सुधा को जी-जान से प्यार करता है। वह इन दोनों के प्यार को समझ नहीं पा रही थी कि वह आखिर इस प्यार को कैसे अपनाये।

इसी उधेड़बुन में सुधा ने कमरा बंद किया और आराम कुर्सी पर बैठकर सोचने लगी। सोचते-सोचते सुधा की अश्रुधारा अविरल बह निकली जा रही थी और वह एकदम जड़वत बैठी रह गयी।

तभी कमरे में डाक्टर साहब आये और सुधा की तारीफ करने लगे। डाक्टर बोले चले जा रहे थे लेकिन सुधा एकदम चुपचाप बैठी रही। डाक्टर साहब को चिन्ता हुई। उन्होने सुधा को ध्यान से देखा तो पाया कि वह एकदम विक्षप्त लग रही है। डाक्टर ने फौरन नर्स को बुलवाया और सुधा को चैक करने लगे तो पाया कि सुधा मानसिक रोगी की तरह बर्ताव कर रही है। अब डाक्टर साहब ने नर्स से कह कर सुधा को स्पेशल वार्ड में भिजवाया जहाँ उसकी अच्छी देखभाल हो सके। दुसरों का दुःख दूर करते-करते बेचारी सुधा खुद अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी।।

(हमें जिन्दगी में अपना व्यवहार ऐसा रखना चाहिए जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे)
मैं आशा करता हूँ की आपको ये story आपको अच्छी लगी होगी। 

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