ये कैसा इश्क़ है

ये कैसा इश्क़ है


संजीव के पापा मजिस्ट्रेट थे.जिनके पास प्रसाशनिक पावर था, चूँकि उनकी पोस्टिंग एक छोटे से शहर में थी, इसलिए सभी संजीव के पिता जी को जानते थे, उनकी शहर में इज्जत भी थी,इतना पावर होने के बाबजूद भी संजीव ने कभी घमंड नहीं किया, वो हमेशा अपनी ही दुनिया में खोया रहता था, उसकी दुनिया थी तो बस किताबें. उसका कोई अगर बेस्ट फ्रेंड भी था तो वह था किताब. सुबह तैयार हो कर स्कूल जाता और दिन में स्कूल से आने के बाद सो जाता, फिर शाम से पढ़ने बैठ जाता,

जबकि उसके साथ पढ़ने वाले बच्चे शाम को मस्ती किया करते थे, और वह घर में बैठ कर पढ़ा करता था , देखते देखते दो साल बीत गए, वह कभी अपने आस पास की दुनिया से भी मतलब नहीं रखता था, हलाकि उसके पापा को क्वाटर मिला हुआ था, जहाँ और भी बहुत सारे क्वाटर बने हुए थे, जिनमे उनके पापा के दोस्त रहा करते थे, लेकिन संजीव कभी किसी के यहाँ नहीं गया. एक बार संजीव के मम्मी -पापा गाँव गए हुए थे, और उन्होंने पड़ोस में रहने वाली सीमा आंटी को संजीव के खाना की जिम्मेदारी दे दी थी,



सीमा आंटी भी मान गयी थी, इन दो सालो में संजीव और सीमा आंटी की मुश्किल से ही बात हो पायी थी. संजीव को यह भी नहीं मालुम था की उसके बगल में कौन कौन रहता है, कभी कभी स्कूल आते जाते कोई मिल जाए, बस इतना ही वह किसी को भी पहचानता था. उस दिन भी स्कूल से आने के बाद जब उसका गेट बजा तो वह गेट खोला तो सामने सीमा आंटी खड़ी थी, उनके हाथ में खाना का थाली था, संजीव ने खाना का थाली ले लिया, और सीमा आंटी मुस्कुराते हुए पूछा, तुम्हे क्या पसंद है? वही बना दूंगी. इस पर संजीव ने कहा, आप जो बना देंगी मैं खा लूंगा. सीमा आंटी वापस चली गयी,

यह बोलते हुए की कुछ लेना हो तो बता देना, संजयव भी हामी भर दी. फिर दरवाजा बंद कर चुप चाप खाना खाया और सो गया, शाम को वह पढ़ें बैठ गया, एक बार फिर उसका दरवाजा बजा, संजीव ने दरवाजा खोला तो सामने एक खूबसूरत सी लड़की खड़ी थी, जिसके हाथ में खाने का प्लेट था, जिससे संजीव को समझ आया की वह सीमा आंटी के घर से आयी है, उसने संजीव को प्लेट देते हुए कहा की यह नाश्ता है और रात को क्या खाना है इस पर संजीव ने बोलै जो मिल जाएगा खा लूंगा. लड़की चली गयी, संजीव ने उस लड़की को कभी नहीं देखा था, शायद वह भी कभी घर से नहीं निकलती थी, या यूँ कह ले की संजीव ही कभी घर से नहीं निकलता था.

 संजीव वापस अपने रूम में आ कर पढ़ने लगा, रात को एक बार फिर सीमा आंटी आयी जिनहोने रात का खाना दिया, इस बार संजीव उन्हें घर के अंदर आने दिया, साथ में शाम वाली लड़की भी थी, उसके हाथ में भी खाने का ही प्लेट था, सीमा आंटी ने खाली प्लेट ले लिया, और उनकी लड़की खाना टेबल पर लगाने लगी, आंटी ने संजीव से नाश्ते का प्लेट माँगा तो संजीव ने अपने रूम की तरफ इशारा किया, आंटी जब संजीव के रूम गयी तो आस्चर्य से भर उठी क्योँकि वह रूम नहीं छोटा सा लाइब्रेरी था,

 रूम किताबो का भंडार था, उसने अपनी बेटी सुषमा को आवाज दिया,उस दिन संजीव को पता चला की यह सीमा आंटी की बेटी है, जिसका नाम सुषमा है . सुषमा जब संजीव के कमरे गयी तो वह भी आस्चर्य से भर गयी चारो तरफ सिर्फ और सिर्फ किताबें रखी हुई थी. जिसे देख कर सीमा आंटी ने कहा, एक संजीव है जो सिर्फ पढता है, एक तुम हो जो नहीं पढ़ती कुछ सीखो इससे. सुषमा झेंप गयी और उसने बोला मम्मी चलो यहाँ से .

सुषमा के जाने के बाद सीमा आंटी ने संजीव से कहा, कुछ मेरी बेटी को भी पढ़ा दो, वह पढ़ना नहीं चाहती. संजीव ने सुन कर सिर्फ हामी भर दी. दूसरी शाम नाश्ता देने जब सुषमा आयी तो उसके हाथ में खाने के प्लेट के साथ साथ किताबें भी थी, संजीव चुप चाप उसे अंदर आने दिया , सुषमा ने किताबो से प्रश्न पूछना शुरू किया और संजीव उसके प्रश्न का उत्तर बहुत ही सरल भाषा में समझाता गया, उसके समझाने से सुषमा को सब कुछ अच्छी तरह से समझ में आता गया, कुछ देर के बाद सुषमा वापस चली गयी, रात को सीमा आंटी जब खाना लायी तो उन्होंने संजीव की यह तारीफ़ करना शुरू किया की आज रात सुषमा सिर्फ पढ़ाई कर हैं, जिसे देख कर उसे अच्छा लगा.

 अब रोज शाम को सुषमा कुछ देर आती जिसे संजीव पढ़ा देता, हलाकि संजीव और सुषमा एक ही क्लास में पढ़ते थे, लेकिन संजीव का समझाने का स्टाइल ही कुछ अलग था जिससे सुषमा को सब कुछ समझ में आ जाता था.पढ़ाई के साथ साथ सुषमा कब संजीव के करीब आने लगी उसे खुद ही नहीं पता चला, उसे संजीव का साथ अच्छा लगने लगा, पहले वह कुछ ही देर में वापस घर चली जाती थी, अब वह दो दो घंटे संजीव के साथ रहती थी, अब उसे अपने घर जाने की इक्छा ही नहीं करता था.सुषमा को यह मालुम था की संजीव के माता पिता चले आएंगे तो वह नहीं आ पाएगी इसलिए वह संजीव के और करीब जाने लगी, किसी न किसी बहाने से संजीव को छूने की कोशिश करती थी, संजीव से अपने हाल दिल बयान करने की कोशिश करती थी, लेकिन संजीव था



की सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करता था. कुछ दिनों के बाद संजीव के मम्मी पापा चले आये, अब सुषमा शाम को कभी कभी ही आ पाती थी, अब वह संजीव के करीब ना रह पाने की वजह से उदास रहने लगी. ठंड शुरू होने लगी और संजीव ठण्ड में स्कूल से आने के बाद छत पर जाने लगा, एक बार फिर सुषमा को मौका मिल गया वह भी छत पर चली जाती और संजीव से कुछ ना कुछ बहाने से बात किया करती थी, एक दिन जब संजीव छत पर धुप सेंक रहा था तो सुषमा हाथो में किताब लिए आयी और संजीव से पूछने लगी, संजीव ने उसे बता दिया, तभी सुषमा ने किताब को धीरे से गिरा दिया जिसके बाद संजीव किताब को उठाने के लिए जैसे ही झुका सुषमा भी झुक गयी, और जान कर संजीव से टकरा गयी, टकराने की वजह से सुषमा और संजीव के लब( औंठ) आपस में टकरा गए, जिसकी वजह से संजीव और सुषमा दोनों के शरीर में एक अजीब सी सिहरन हुई, यह संजीव का पहला एहसास था,

उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे? उसका दिमाग काम है कर रहा था, उसने सॉरी बोला, और चुप चाप निचे उतर गया, उस रात वह सो नहीं पाया, उसने सारी रात करवटें बदलता रह गया, उसे बार बार वह सीन आँखों के सामने आ जाता, अब उसे बेसब्री से कल का इन्तजार था कल स्कूल से आने के बाद जब वह सुषमा का इन्तजार कर रहा था तो सुषमा सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, संजीव का दिल उसे देख कर जोर जोर से धरकने लगा.एक बार फिर वह सुषमा से टकराना चाह रहा था, लेकिन सुषमा इस बात को भांप गयी थी और उसने डायरेक्ट संजीव को किश कर लिया, उसके बाद तो संजीव सुषमा को देखता ही रह गया,

आज संजीव को एहसास हुआ की वह सुषमा को पसंद करने लगा है या यूँ कह ले की उसे सुषमा से इश्क़ हो गया था. सुषमा वापस अपने घर चली गयी और काफी देर तक संजीव यूँ ही खड़ा रह गया, धीरे-धीरे परीक्षा का समय पास आ रहा था, और संजीव सुषमा के ख्यालो में खोया रहता था जिसका नतीजा यह हुआ की संजीव एक विषय में फ़ैल कर गया, जबकि सुषमा सभी विषय में पास कर गयी, आज सुषमा संजीव से सीनियर हो गयी थी, संजीव एक बार अपने कमरे की तरफ देखता और अपने आपको देखता,

जो संजीव हमेशा किताबो में खोया रहता था आज वह सुषमा में ख्यालो में खोने की वजह से किताबो से दूर हो गया जिसका फल उसे मिल चूका था,संजीव के माता पिता को भी विश्वास नहीं हो रहा था की संजीव फ़ैल कर गया और ना ही सीमा आंटी को विश्वास हो रहा था, इस दुःख में जहाँ सुषमा को संजीव के साथ होना चाहिए था वहीँ सुषमा अपने पास होने का जश्न मना रही थी, यह बात आजु संजीव को बहुत खल रही थी की यह कैसा इश्क़ है???

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